Monday, January 24, 2011

जंग...

यह कविता एक सैनिक के दिल का हाल बताती है|

जंग से पहले ......

जिंदगी की डोर को हाथ में ले उससे पतंग की तरेह उड़ाते रहे
कभी कांटो में उलझाया तो कभी हवा में झुलाते रहे
जूनून था सर पर कुछ कर गुजर जाने का
इस तमन्ना की खातिर बस खुदको अजमाते रहे
तंग हो गए जब आग की लपटों से
झूठे वादे और इन आतंकी कपटीयों से
आज हमने फिर बन्दूक उठाई है
दुश्मन छुप ले जहाँ छुपना है
आज तुझे लेने तेरी मौत आई है||

और जब जंग जीत जाते हैं ...........

सोचा था शान्ति होगी इस जंग के बाद
अमन का पैगाम आएगा कुछ चीखों के बाद
पर चिराग लेकर अब हम लाशें ढूँढा करते हैं
नफरत दुश्मन से नहीं अब अपने आप से किया करते हैं
अब हर और बर्बादी का मंजर नज़र आता है
हर इंसान के हाथ में एक खंजर नज़र आता है
कहा करते थे ये धरती माँ है हमारी
आज हर कतरा इसका बंजर नज़र आता है
बस हर और बर्बादी का मंजर नज़र आता है||

9 comments:

  1. Wow!!
    Very nice words you used!!

    Keep Smiling:)

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  2. Ab tak ki sabse behtarin kavita....

    Wah re mere Desh-Premi.. :)

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  3. Marvelous! Don't have words to praise this one. Beautifully chosen words and nicely crafted. kudos!!

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  4. too good girish...:):) superlike

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. too good...give real picture...liked it...check out my poem

    my blog
    http://nimhem.blogspot.com

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