Tuesday, January 11, 2011

कुछ पता नहीं....

लडखडा के चल दिए यू सुनसान सडको पर
मंजिल है कहाँ हमे कुछ पता नहीं
चंद लम्हों के दामन में खुशिया समेट लाया था
अब वो लम्हे है कहाँ हमे कुछ पता नहीं
मोहब्बत ने ग़ालिब शायर बना डाला
नशा शबाब का है की हमे कुछ पता नहीं

शराब पी कर की तुम्हे भुलाने की कोशिश
पर अब जहाँ देखता हूँ तुम ही तुम हो
समझ नही आता तुम्हे ख़ुशी कहूँ या गम
हँसता हूँ तो याद आती है
रोता हूँ तो याद आती है
चेहरा तुम्हारा देखे सदिया बीत गई
जिंदा भी हूँ मैं हमे कुछ पता नहीं ||

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