Monday, August 16, 2010

जिंदगी ||

दुनिया की भीड़ में अकेला सा चल रहा हूँ ,
मुस्कराने की चाह में आंसुओं से लड़ रहा हूँ |
खुशिया बिखरीं हैं हर और मेरे ,
ना जाने हर पल क्यों यू कमजोर पढ रहा हूँ ||

चारों और बह रहीं हैं ठंडी हवाएं ,
ना जाने क्यों मैं गर्मी से भभक रहा हूँ |
उजियारा हर और छा रहा अब जिंदगी में ,
फिर क्यों अँधेरे की खातिर तड़प रहा हूँ ||

ऋणात्मकता से भर चली है ये जिंदगी ,
जाने कब ये ऋण चूका जाएगा |
प्रतीक्षा करने की आदत है मेरी और समय यू ही निकल जाएगा ,
बेक़रार हूँ में जिस कल के लिए , वो कल न जाने क्या रंग लाएगा ||

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