Tuesday, August 31, 2010

खेल ..||

तेरेह साल के किशोर ने शायद कभी सोचा भी नही होगा की किस्मत उससे इस तरह बर्ताव करेगी|

उसे याद है आज भी वो दिन जब वह सौतेली माँ की मार के डर से घर से भाग आया था| उसके पास कुछ भी नही था करने को, भूख प्यास से भटकते-भटकते आखिर में सड़क पर एक कार से टकरा कर गिर पड़ा| गला प्यास के मारे सूखता हुआ और पैर से रक्त रिसने लगा था| उसे लगा की शायद वह अब और ना जी सकेगा| भरी गर्मी में सड़क पर पड़े किशोर को उठाने का समय किसी के पास भी नही था| पास ही के घर में ग्यारेह साल की रश्मि जिसने ये देखा, उससे ये सहा न गया और उसने अपनी माँ को कुछ करने को कहा|
माँ ने किशोर को कुछ लोगो की सहायता से बरामदे में लिटाया और उससे पानी पिलाया| पूछने पर जब किशोर ने अपनी पूरी कहानी सुनाई तब रश्मि की माँ को समझ नही आया की क्या जवाब दिया जाए| उन्होंने उसे पूछा अगर वह काम करने का इच्छुक है, किशोर ने तुर्रंत हां बोल दिया| उससे आसरा मिला और काम करने पर इज्ज़त भी| धीरे धीरे वह घर में घुलने मिलने लगा| खाली समय में वह रश्मि के साथ खेल लेता था|

रश्मि की मुस्कराहट उसे बहुत पसंद थी| जब खेल खेल में रश्मि खिलखिला उठती थी तो उससे देख कर उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहता था| माँ ने अपने घर के बाहर का छोटा कमरा किशोर को दे दिया था| घर का काम हो जाने पर वह अपने कमरे में आराम कर सकता था| पर रश्मि के साथ खेलते समय उससे समय का सुध ही नही रहता था| माँ को उसका रश्मि के साथ इतना घुलना मिलना पसंद नही था| काम ख़त्म होने के बाद जब माँ उससे अपने कमरे में जाने को बोलती थी तो वह कुछ और काम तलाश करने लगता जिससे वह थोड़ी और देर घर में रह सके एवं रश्मि की मुस्कराहट को निहार सके, सुन सके| शायद वो उसे अच्छी लगने लगी थी| रश्मि जोकि स्वाभाव से चंचल और कोमल ह्रदय की थी उससे इस बात का कुछ आभास नही था बस उससे एक साधारण सा दोस्त ही समझती थी| समय निकलता गया और किशोर के दिल में रश्मि के लिए जगह बदती चली गई| उससे डर लगता था कि किसी दिन वह रश्मि को खो ना दे|
कहते हैं अच्छा समय पंछी की तरह फुर्र हो जाता है| एक समय आया जब रश्मि को शिक्षा के लिए दुसरे शहर में जाना था| किशोर उसकी माँ से बार-बार अनुरोध करने लगा की रश्मि को यही पड़ने दें| उनके ना कहने पर वह बोला की उससे रश्मि के साथ भेज दिया जाए वह वहां पर उसका काम कर दिया करेगा और इस तरह रश्मि को पढाई में कोई बाधा नही आएगी| रश्मि की माँ को समझ में नही आ रहा था की वह ऐसा क्यों कह रहा है और उसके सभी तर्क खारिज कर दिए गए|
कल जब रश्मि के जाने का समय में सिर्फ २ ही दिन बचे थे तो अनायास ही उसके मुह से निकल गया की वह रश्मि के बिना यहाँ नही रह पाएगा| वह नही जानता था की उसने ऐसा क्यों कहा पर शायद यह कह देना ही उसकी आखिरी उम्मीद बची थी| रश्मि और उसकी माँ यह सुनके जड़ रह गए| रश्मि सोच रही थी कि ना जाने क्यों वो उसके बारे में ऐसा सोचता है जबकि उसने उससे कभी एक दोस्त से ज्यादा नही समझा| क्या उसके साथ थोडा खिलखिलाना ही उसकी भूल थी? माँ को अपने कानो पर विशवास नही हो रहा था| किशोर अब कुछ सोचने या बोलने की अवस्था में नही था| शायद उसने कुछ ऐसा सपना देख लिया था जो कभी सच्चाई में नही बदल सकता था| रश्मि के पिता जोकि पोलिस में अफसर थे उनसे ये सहन नही हुआ और उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे किशोर को अपनी बेल्ट से मारना चालू कर दिया| थोड़ी ही देर में उसे उसके सामान के साथ बहार फ़ेक दिया गया| जिस्म पर दर्द और ह्रदय में एक टीस सी उठ रही थी|

एक दिन वह घर के सामने पड़ा रहा भूखा प्यासा, दर्द से बेहाल बस इसी फ़िक्र में की शायद रश्मि उससे एक नज़र देखे और उससे अन्दर बुला ले| आज जब ऐसा कुछ भी ना हुआ तो उससे अपना पहला दिन याद आया की किस तरह उसे उस घर में पनाह मिली थी| उसने कुछ सोचा और अपनी किस्मत पर अपने अप से ज्यादा विशवास किया और रश्मि के घर की तरफ चल पड़ा| अधमरी हालत में उसे कुछ आभास नही था अचानक एक जीप से टक्कर खा कर गिर पड़ा| आँखों से आंसू और शरीर से रक्त रिसने लगा| उसने आंखिरी बार उस घर की तरफ नज़र उठा कर देखा, शायद फिर से रश्मि उससे बचा ले| पर आज कोई नही था, सिर्फ वो और उसकी किस्मत|  और उसकी आँखे धीरे धीरे बंद हो गई ||

No comments:

Post a Comment