Monday, May 31, 2010

क्षत विक्षत जिंदगी

क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,
जो कभी मेरा हो ना सकेगा,
क्यों उसी की आज कमी खल रही है

आंसू के दो कतरे पलक से टपके
याद आया मेरे सपनों की चिता जल रही है
धुंधला सा हो चला है सब कुछ
किसी के लिए मेरी जिंदगी गल रही है

शरीर है जड़, ना सोचने की ताकत
ना जाने क्या बिमारी अंदर पल रही है
मस्तक पे चिंता की लकीरें
आँखे क्यों अंदर गढ़ रहीं हैं

क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,

सपनों का आशिया यूँ जमीं पर बिखरा
हर और बस काली हवा चल रही है
देख के जलती हुई आशिआने की लाश
जवानी कूद जाने को मचल रही है

तड़प रही है जिंदगी बेबस सी होकर
धड़कन है की बस धड़क रही है
सुन ली गई है शायद मेरी फ़रियाद 
धड़कन धीरे-धीरे अब थम रही है

क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,
जो कभी मेरा हो ना सकेगा,
क्यों उसी की आज कमी खल रही है

8 comments:

  1. oye pareshaan aatma. kis cheez ki kami hai. You have everything u want. then also so depressed. come on man !!! dats not a way to live ur life... maje kar have fun...

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  2. :) ...I am not depressed :)

    And am enjoying my life, having fun too :)

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  3. Khud likhi?? i dnt knw tune ye kyu likhi.. lekin ammmazzzingg likhi.. :)

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. dusari baar padne par samjh aa gayi k kya likhi hai ha n kyu likhi hai .... par sahi mein mast likhi hai ... ;) :)

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  6. Acchi kavita hai. Technically sound...though off-course on negative side.

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  7. वाह आप के कविता को पढ़ कर लगा
    क्षत विक्षत सी हालत में,
    जिंदगी यूँ ही चल रही है,

    मेरे जिंदगी की कहानी को आप सरे आम बे आबरू कर रहे ते
    हम सोच न पाए की आप भी उस तकलीफ से गुजर रहे
    ते जहा हम भी पहले से खड़े ते..
    लेकिन आप ने भावनाओ को वो कीमती शब्द दिया है,
    जिसे हम व्यक़त नहीं कर सकते ते...
    अंत में हम यही कहेगे दोस्त तुम्हारी कविता का हर शब्द कीमती है हर किसी के जिन्दगी को छु जाएगी पर भावनाओ का खेल कोई समझ लेता है कोई समझ ने कोसिस ही नहीं करता.....

    क्षत विक्षत सी हालत में,
    जिंदगी यूँ ही चल रही है,

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