Had written this poem long back, posting it here today ...
लेकर चले थे जो एक छोटी सी ख्वाइश घर से
ना जाने कितनी दूर आ गए हैं
हो चुकी ना जाने कितनी ख्वाइशे पूरी
फिर भी ना जाने क्यों है जिंदगी अधूरी
अनजानों के साथ अनजानी राह पर चलते
ना जाने अपने कब अनजान हो गए
भागते रहे हम दूर इतना कि
अपने ही घर में मेहमान हो गए
हँसते हैं मुस्कुराते हैं और इश्क भी जताते हैं
फिर भी न जाने क्यों अपने को तनहा ही पाते हैं
कोई सुन न ले रात में ये सिसकिया हमारी
कुछ इसलिए भी हम रात जाग कर बिताते हैं
चलते जा रहे हैं हम दूर पर मंजिल नजर आती नहीं
खरीदे हुए सामानों से मन तो बहलता है पर ख़ुशी नजर आती नहीं
देखते हैं पुरानी यादो को अक्सर
पर याद क्यों अब रुलाती नहीं
मन करता है की जा सकू फिर से वापस
ले सकू सुकून की एक नींद यू दादी की गोद में
रो सकू जी भर के जहाँ
और बता सकू की क्यों रोया हूँ मैं
पर फंस गया हूँ जिंदगी में इस खातिर
की बस अब यही सब सोचता हूँ मैं
रोज सोते वक़्त आँखों से आते पानी को
ना टूट जाने के डर से पोंछता हु मैं
ना जाने हर रात को बैचैन सा
यही सब सोचता हु मैं ॥
ना जाने कितनी दूर आ गए हैं
हो चुकी ना जाने कितनी ख्वाइशे पूरी
फिर भी ना जाने क्यों है जिंदगी अधूरी
अनजानों के साथ अनजानी राह पर चलते
ना जाने अपने कब अनजान हो गए
भागते रहे हम दूर इतना कि
अपने ही घर में मेहमान हो गए
हँसते हैं मुस्कुराते हैं और इश्क भी जताते हैं
फिर भी न जाने क्यों अपने को तनहा ही पाते हैं
कोई सुन न ले रात में ये सिसकिया हमारी
कुछ इसलिए भी हम रात जाग कर बिताते हैं
चलते जा रहे हैं हम दूर पर मंजिल नजर आती नहीं
खरीदे हुए सामानों से मन तो बहलता है पर ख़ुशी नजर आती नहीं
देखते हैं पुरानी यादो को अक्सर
पर याद क्यों अब रुलाती नहीं
मन करता है की जा सकू फिर से वापस
ले सकू सुकून की एक नींद यू दादी की गोद में
रो सकू जी भर के जहाँ
और बता सकू की क्यों रोया हूँ मैं
पर फंस गया हूँ जिंदगी में इस खातिर
की बस अब यही सब सोचता हूँ मैं
रोज सोते वक़्त आँखों से आते पानी को
ना टूट जाने के डर से पोंछता हु मैं
ना जाने हर रात को बैचैन सा
यही सब सोचता हु मैं ॥