क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,
जो कभी मेरा हो ना सकेगा,
क्यों उसी की आज कमी खल रही है
आंसू के दो कतरे पलक से टपके
याद आया मेरे सपनों की चिता जल रही है
धुंधला सा हो चला है सब कुछ
किसी के लिए मेरी जिंदगी गल रही है
शरीर है जड़, ना सोचने की ताकत
ना जाने क्या बिमारी अंदर पल रही है
मस्तक पे चिंता की लकीरें
आँखे क्यों अंदर गढ़ रहीं हैं
क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,
सपनों का आशिया यूँ जमीं पर बिखरा
हर और बस काली हवा चल रही है
देख के जलती हुई आशिआने की लाश
जवानी कूद जाने को मचल रही है
तड़प रही है जिंदगी बेबस सी होकर
धड़कन है की बस धड़क रही है
सुन ली गई है शायद मेरी फ़रियाद
धड़कन धीरे-धीरे अब थम रही है
क्षत विक्षत सी हालत में,
जिंदगी यूँ ही चल रही है,
जो कभी मेरा हो ना सकेगा,
क्यों उसी की आज कमी खल रही है